Wednesday, August 22, 2007

मेरी प्यारी यादें, जो sirf एक कविता नही..............

मेरा गाँव
वो गाँवं कि बोली, वो आलू कि खेती
वो मीठा सा गन्ना, वो बगुलों कि toli
वो pyari si daadi, वो baba कि lathi
मौसी दादी कि यादें, चाचा बाबा कि बातें
वो बुआ कि rooti, jo mere चाचा से मोटी
kauwon का हांकना, वो बैलों कि लोहड़ी
आम्मा दादी सी बातें, guddi बुआ के sathen
वो pyari सी raatein, जिनमें जन्मों कि बातें
ऐसी है यादें, जिनमे सच्ची सब बातें
वो गाँवं कि बोली....................
वो गेहूं कि बाली, जो उसकी थी प्यारी
वो ऐसी थी यारी, जो सबसे थी न्यारी
मेरे चाचू कि बातें, जो सबको हैं daatein
सावन के झूले, सरदी के मेले
वो चुहले कि रोटी, जो मम्मी ने सेंकी
पापा कि तानें, बाबा कि तालें
वो kheto कि jhar-jhar, वो टूटा सा mandir
chakki कि ttu-ttu, वो bamba किनारे
बचपन कि यादें, hamko हैं pukarein.............


इसे लिखने के बाद कुछ भी लिखना मुश्किल, barson से गाँवं नहीं ja पाया, jarooratein और jimmedariyon के आगे bas नहीं चला, bahut से लोग जो is कविता me हैं, वो is duniyan me नहीं हैं..................................piyush pandey.........

Thursday, August 9, 2007

अपने हाथ बंधे हुये हैं.............

मार डालेगी मुझको ये खुस्बयानी आपकी, मौत भी आएगी अब मुझको जुबानी आपकी..................कुछ यही हाल है पत्रकारों का, दुनिया ये नही जानती कि बडे बडों को अपनी कलम कि ताकत बताने वाले ऑफिस में बेचारे हो जाते हैं बॉस बोले तो सब राईट है, फिर सच और साहस कहॉ, काम होना चाहिऐ बस, साक्षात्कार में पहला सवाल नौकरी करना चाहते हैं या फिर पत्रकारिता, खैर.................... ये विचार हैं, तर्क का मुद्दा नहीं, फिर मिलता हूँ काम निबटाकर, जाइये नहीं ये काम दुसरे टाईप का है, इसमे कोई काम नहीं करना पड़ता number बढते रहते आदेश पर अमल करने से??????? बोर करने का कोई इरादा नही बॉस कहते हैं दस हज़ार से कम इन्कंम वाले लोगो के लिए लिखना बेकार है, क्यूंकि वे अख़बार नही खरीदते बिल्कुल सही कहते हैं, पहले लगता था कि बॉस गलत हैं लेकिन अब सही लगता है, क्यूंकि हम स्वतंत्र नही है अपनी अभिव्यक्ति के लिए अखबार मे रहना है तो राधे-राधे कहना है...........हंसिये मत गम्भीर विषय है, देश कि प्रगति के लिए आज मीडिया....................सवाल अधूरा इसलिये है क्यूंकि हम अधूरे हैं, हमारे हाँथ बंधे हैं, कहॉ जाएँ, कौन सुनेगा, अधिकार तो सबको है जानने का, हमारे पास क्या एक्स्ट्रा है, सिर्फ एक संस्थान जिसमे पांच साल काम करो, दुनिया भर के जुगाड़ करो, तब जाकर सूचना विभाग मान्यता देगा इससे पहले चेन से बंधे हुए हैं...............................मेरा गुस्सा जायज है....क्यूंकि घुट-घुट कर अपनी वास्तविकता भूल गया हूँ, aisaa नही कि मैं किसी से पीछे रह गया हूँ, बिल्कुल नही, मैं स्वीकार कर्ता हूँ कि वो सब कुछ मैंने किया, जो करने का मन नही था, मजबूर था नहीं तो सिस्टम से बाहर होता............................

पीयूष पाण्डेय

Saturday, July 28, 2007

ANURODH

आप पाठको से अनुरोध है कि मेरे ब्लोग पर अभी शुरुआत में कुछ गलतियों को नज़रान्दाज़ करने कि कृपा करे, उसके बाद मैं सभी गलतियों को सुधारने कि कोशिश करुंगा

धन्यवाद

Friday, July 27, 2007

Description

Friends i started this blog for some serious discussion on what is happening in Indian media. Now a days media is under the scanner of Indian government for sting operation. By doing this they want to cut down wings of media. There are so much controversy what media is doing. Some people says media is extra active, some says they are not showing the news of national interests. They are only trying to sell news and make money. Even some people says now there are no journalists. Condition is so bad now people don't want to talk with journalism.By this blog i want to discuss the role of media in India as well as world. I personally feels Indian media follows western media in case of international news. And most importantly they are not covering international stories until the big news comes. Most news channels showing only the news of Delhi and NCR. Now Newspapers are more localise. There main concern is now business by targeting local news rather than national issues. Now it is not social work its business.