मेरा गाँव
वो गाँवं कि बोली, वो आलू कि खेती
वो मीठा सा गन्ना, वो बगुलों कि toli
वो pyari si daadi, वो baba कि lathi
मौसी दादी कि यादें, चाचा बाबा कि बातें
वो बुआ कि rooti, jo mere चाचा से मोटी
kauwon का हांकना, वो बैलों कि लोहड़ी
आम्मा दादी सी बातें, guddi बुआ के sathen
वो pyari सी raatein, जिनमें जन्मों कि बातें
ऐसी है यादें, जिनमे सच्ची सब बातें
वो गाँवं कि बोली....................
वो गेहूं कि बाली, जो उसकी थी प्यारी
वो ऐसी थी यारी, जो सबसे थी न्यारी
मेरे चाचू कि बातें, जो सबको हैं daatein
सावन के झूले, सरदी के मेले
वो चुहले कि रोटी, जो मम्मी ने सेंकी
पापा कि तानें, बाबा कि तालें
वो kheto कि jhar-jhar, वो टूटा सा mandir
chakki कि ttu-ttu, वो bamba किनारे
बचपन कि यादें, hamko हैं pukarein.............
इसे लिखने के बाद कुछ भी लिखना मुश्किल, barson से गाँवं नहीं ja पाया, jarooratein और jimmedariyon के आगे bas नहीं चला, bahut से लोग जो is कविता me हैं, वो is duniyan me नहीं हैं..................................piyush pandey.........
Wednesday, August 22, 2007
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